( तर्ज - क्यों नहीं देते हो दर्शन ० )
मानले साधो ! कही ,
क्यों बन - बनोंमें
फिर रहा ? ॥ टेक ॥
भेद दिलका छोड दे ,
अरु दंभ मनका मोड दे ।
विषय - मारग खोड दे ,
क्यों कालके घर गिर रहा ? ॥ १ ॥
नीच उँच नहि जानना ,
सब दुःख सुख सम मानना ।
नाम जप हरिका सदा ,
संसारसे तव तिर रहा || २ ||
कुछ नही बनता है करनेसे ,
तिरथ अरु धामभी ।
शुद्ध कर दिलका कपट ,
क्यों भूल भ्रममें गिर रहा ! || ३ ||
कहत तुकड्या , प्रेम हरिका ,
जब तलक जीमें नही ।
सब फोल है बन दौडना ,
क्यों तूभि नाहक
शिर रहा ? || ४ ||
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